छोटे बच्चों के लिए खरगोश और कछुए की कहानी
एक बार एक खरगोश और एक कछुए की दौड़ हुई। जैसा कि हम जानते है कि खरगोश बहुत तेज दौड़ता है और कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलता है तो भला कछुआ कैसे जीता होगा, तो चलिए जानते है इस कहानी में कि कछुए और खरगोश की दौड़ में कौन और कैसे जीता।
खरगोश बहुत तेज दौड़ता था और खरगोश को इस बात का अपने आप पर बड़ा घमंड था। उसके उस घमंड को देखते हुए एक दिन एक कछुए ने उससे दौड़ करने के लिए कहा, उसकी यह बात सुनकर पहले तो खरगोश हँसा और फिर बोला, "यार तुम रहने दो तुम मुझसे नहीं जीत सकते, तुमने खुद को देखा है न कि तुम कितने धीरे-धीरे चलते हो।" उसकी बात सुनकर कछुआ बोला "हाँ मै जानता हूँ कि तुम ही जीतोगे बस मै तो एक बार तुम्हारे साथ दौड़ करना चाहता हूँ।"
खरगोश ने कहा "ठीक है यदि तुम्हे हारने का इतना ही शौक है तो हो जाये एक दौड़।"
अगले दिन खरगोश और कछुए की दौड़ शुरू हो गयी। खरगोश बहुत तेज़ दौड़कर कछुए से बहुत दूर पहुंचकर एक पेड़ के नीचे जाकर रुक जाता है तो कछुए के आने का इंतज़ार करने लगता है। खरगोश सोचता है कि इतने कछुआ आता है इतने क्यों न थोड़ा आराम कर लिया जाये। खरगोश पेड़ की छाव में लेट जाता है और उसे थोड़ी ही देर में नींद आ जाती है। कछुआ धीरे-धीरे चलता ही रहता है वह पूरी दौड़ में कही नहीं रुकता वह एक चाल से चलते-चलते खरगोश जहाँ सो रहा था उस पेड़ तक पहुँच जाता है और कछुआ देखता है कि खरगोश तो थक्कर सो गया है लेकिन कछुआ चलता ही रहता है और वह दौड़ के अंत तक पहुँच जाता है और कछुआ दौड़ जीत जाता है। जब खरगोश की नींद खुलती है वह देखता है कि वह दौड़ हार चुका है और कछुआ जीत चुका था। यह देखकर खरगोश को अपने ऊपर बहुत शर्म आती है और वह सोचता है कि काश मैंने दौड़ ख़त्म होने तक आलस न किया होता तो आज मै जरूर जीत जाता।
कहानी से बच्चों के लिए सीख
1. कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए।
2. कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए।
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